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१९० . जैनपदसागर प्रथमभागनतेसची ऋषभ ले, सौंपदिये सुरराज गजेपे धार गये सुरगिरिपै, न्हौन करनके काजै ॥वधाई॥ सहस आठशिर कलसजु ढारे, पुनिसिंगार समाजै। लोय धरयो मरुदेवी करमैं; हरि नाच्यो सुख साजै॥बधाई।३। लच्छन व्यंजन सहित सुभग तन,कंचन दुति रवि लाजै । या छवि बुधजनके. र निशिदिन, तीनज्ञानजुत राजै। वधाई॥४॥
९। राग-सारंग। .. बधाई भई हो, तुम निरखत जिनराय वधाई टेक ॥ पातक गये भये सब मंगल, भेटत चरन कमल जिनराई बधाई०॥१॥मिटे मिथ्यात भर सके बादर, प्रगटत आतम रबि अरुनाई। दुर बुधि चोर. भजे जिय जागे, करन लगे जिनधर्म कमाई ॥बधाई॥२॥ दृगसरोज फूले दरसनतें, तुम करुना कीनी सुखदाई।भाखि अनुव्रत महा विरतको,बुधजनको शिवराह बताई।बधाई।
... ... . (१०) . . बधाई चंदपुरीमैं आज ॥ बधाई०॥ टेकः।।