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... गुरुस्तुतिपद-संग्रह ! १७७ लाकी धन्य यह, पाप भयो सव सेवकसो। पहिले असनपाप देकरके, पीछे धन ले सेवकसों । तुष्ट होकर बारता करे, रागजुत सेवकसों ॥ तुष्टं सुफल ये रुष्ट भये, क्या जाने क्या दे जाते हैं। धिधिक् ॥३॥चौमासाके प्रथम दिवस परि,मेष दिगंवर पदमासन् । जिनप्रतिमाके सामने, करै प्रतिज्ञा वसनासन् ।। सेवकगनसों यों कहलायें, वक्त नहीं सुन गुरुभाषन् । परिग्रह धारो तजो यह, योगप्रतिज्ञाको आसन् ॥ इम सुन वचन ततच्छन उठकर, फिर भेषी बन जाते हैं । धिक् धिक् ॥ ४॥ खूब अनुग्रह किया आपने, सेवक गन सव तार दिया। जरा देरमें अघोगति, वंधनका हकदार किया ॥ समझो. सेवकगन हिरमें, क्या अनुपम उपहार दिया।ज्ञान-चक्षुः को खोलकर, देखो क्या उपकार किया ॥ मोहनींदके जोर अज्ञजन, योंही काल गमाते हैं। धिक् धिक् ॥ ५॥ आंख खोलकर देखोआगम भगवतनें क्या किया बयान्। देवधर्मगुरु इन्होंका;