________________
गुरुस्तुतिपद-संग्रह। महामोह तरुको, जड़मूल उखाड़ा जिन० १॥ जगमाहिं छा रहा है, अज्ञान अँधियारा। विज्ञान मान तमहर, घर माहिं उजारा ॥ जिन ॥२॥ सांग तजि परिग्रह, दिग अंबर धारा । रत्नत्रयादि गुणसमुद्र,शर्मभंडारा जिन॥३॥विधि उदय शुभ अशुभमैं, हर्ष अरति निवारा। निज अनुभवरसमाहिं, कर्ममलको पखारा । जिन० ॥ ४॥ पर-वस्तु-चाह-रोकि, पूर्व-कर्म संहारा। 'परद्रव्यसे जु भिन्न, चिदानंद-निहारा ।। जिन०
॥५॥ शुक्लामिको प्रजालि, कर्मकानन जारा । तिनमुनिकों देख मानिक नमस्कार उचारा ॥ जिन० ॥६॥
(३१) वनमै नगन तनराजे,योगीश्वरमहराज, टेक इक तो दिगंवर खामी, दूजो कोई नहिं साथ ॥ वनमैं ॥ १॥ पांचों महाव्रतधारी, परिसह जीते बहु भाँत ॥ वनमैं॥२॥ जिनने अतनंमदमात्यो,
१ कामदेवका मद, मारा ।