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१४८ जैनपदसागर प्रथमभागविमल-ज्ञान-हगसाना । दौल कौन सुख जान लयो तिन, कियो शांतिरस पाना॥धनि०॥३॥
धनि मुनि निज आतम हित कीना। भव असार तन असुचि विषयविष, जान महाव्रत लीना धनि मुनि०॥टेक।एकाविरारी परिगह छारी, परिसह सहतअरीनापूरव तन तप-साधनमान न, लाज गनी परवीना ॥धनिमुनि०॥१॥ शून्यसदन गिरगहनगुफाम, पद्मासन आसीना। परभावन” भिन्न आप पद, ध्यावत मोहविहीना ॥ धनिमुनिः ॥२॥ स्वपरभेद जिनकी बुधि निजमैं, पागी बाह्य लगी ना । दौल तास पद-वारिज-रैजनै, किस अघ करे न छीना ॥धनि मुनि०॥३॥
५भावन। • कबधों मिलै मोहि श्रीगुरु मुनिवर, करि हैं
१ सम्यग्ज्ञानसम्बग्दर्शनसे सन गये । २ चरणकमलोंकी धूलिने ३ किसके। १ पाप। .