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जिनवाणी स्तुति पद-संग्रह। १२७ प्रमुख बहुमुनी ॥ जय जय० ॥२॥ जे चर जड भए पीय, मोह वारुनी। तत्वपाय चेते जिन, थिर सुचित सुनी ।। जय जय० ॥३॥ कर्ममल पखारनेहि, विमल सुरधुनी। तजि विलंब अंई. करो, दोल उरघुनी ।। जय जय० ॥४॥
अब मोहिं जान परी, भवोदधि तारनको हैं जैन ॥अव०॥ टेक ॥ मोहतिमिरतें सदा काल, के, छाय रहे मेरे नैन । ताके नासन हेत लियो मैं, अंजन जन सु ऐन ॥ अव०॥१॥ मिथ्या मती भेषको लेकर, भाषत है जो वैन । सो के वैन असार लखे मैं, ज्यों, पानीके फैन ॥ अव० ॥२॥ मिथ्यामती बेल जगफैली, सो दुखफलकी दैन । सतगुरु-भक्ति-कुठार हाथ लै, छेद लियो अति चैन । अव०॥३॥जा विन जीव सदैव कालतें, विधिवस सुख न लहै न । अश; .१ जीव २ । मोहरूपीमदिरा । ३. धोनेके लिये । ४ माता ।
५ पुनीत-पवित्र । ६ शास्त्र जिनवाणी।