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________________ १२२ जनपदसागर प्रथमभाग.: . .:१४९) .. .. । तूही तूही याद मोहि आवै जगतमैं ॥ तूही ॥टेक ॥ तेरे पदपंकज सेवत हैं, इंद नरिंद फर्निद भगतमै ।। तूही०॥१॥ मेरा मन निशदिन ही राच्या, तेरे गुन-रस गान पगतमैं ॥ तूही० ॥२॥भव अनंतका पातक नास्सा, तुम जिनवर छवि दरस जगतमैं ॥३॥ मात तात परिकर सुत दारा, ये दुखदाई देख भगतम ।। तूही०॥४॥बुधजनके उर आनंद आया, अब तो हूं नहिं जाऊं कुगतमैं ॥ तूही तूही०॥५॥ . १५० । राग-रेखता। • तिहारी याद होते ही, मुझे अग्रत वरसता है जिगर तपता मेरा भ्रमसों, तिसें समता सर सता है ॥ तिहारी० ॥१॥ दुनीके देव दाने सब,कदम तेरे परसता है । तिहारे दरश देख * नको, हजारों चंद तरसता है ॥ तिहारी० ॥२॥ तुम्हींने खूब भविजनको, बताया.भिस्त-रसती .१ वर्गका रास्ता । ----..- ... ..
SR No.010373
Book TitleJainpad Sagar 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Baklival
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages213
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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