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हजूरी पद-संग्रह। ॥२॥बुधजन दास रावरो विन, थांस्यु सुधरै काज ।। श्रीजिन० ॥३॥
१३२ । राग-पूरवी नल्द तितालो। हरना जी जिनराज मोरी पीर । हरना॥ टेक। आनदेव सेये जगवासी, सस्यो नहीं मेरो काज. ॥ हरनाजी० ॥१॥जगमैं वसत अनेक सहज ही, प्रनवत विविधसमाज । तिन इष्ट
अनिष्ट कल्पना, मेटोगे महाराज ॥ हरनाजी० .॥२॥पुदगलराचि अपनपौ मूल्यो, बिरथा करत इलाज । अवहि.यथाविधि वेग वनाओ, बुधजनके सिरताज ॥ हरनाजी० ॥३॥. . . .
१३३ । राग-धनासरी धीमा तेतालो।. ... :: प्रभु थांसू अरज हमारी हो.॥ प्रभु० ॥ टेक॥ भैरे हितून कोऊ जगतमें तुमही तो. हितकारीहो
प्रभुः ॥१॥ संग.लग्यो मोहि नेक न छां है, देत.मोह दुख भारी । भववनमांहि नाचावतं मोकों, तुम जानत हो सारी ॥ प्रभु० ॥२॥ थांकी महिमा अगम अगोचर, कहि न सके