________________
. हजूरी पद-संग्रह। : ९३ सिंहासन वरनों, ये गुण तुमते न्यारे । तुमगुण कहन वचनबल नाही, नैन गिनें किम तारे । प्रभु०॥३॥
(८०)
दरसन तेरा मन भावै । दरसन० ॥ टेक ॥ तुमकों देखि तृपति नहिं सुरपति, नैन हजार बनावै ॥दरसन॥१॥ समवसरनमें निरखै सचि पति, जीभसहस गुनगावै। क्रोड़ कामको रूप छिपत है, तेरो दरश सुहावै ।। दरसन० ॥२॥ आंख लगै अंतर है तो भी, आनंद उर नसमा वै। ना जानों कितनों सुख हैरिको जो नहिं पलक लगावै ।। दरशन० ॥३॥ पाप नाशकी कौन बात है, द्यानत सम्यक् पावै ।आसन ध्यान अनूपम स्वामी । देखे ही बनि आवै ।।दरशन ॥४॥
' (८१)
हो. स्वामी जगत जलधित तारो॥ होखामी० १ इस पदमें एक कडी रह गई दिखती है । २ इन्द्र । ३ इन्द्रको ।