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करम देत दुख जोर हो साइयां करमदा कुपेच मेरे है दुख दाइयां हो कलिमैं नथ बड़े उपगारी कह विह कछु सुनो सुगुरुके जिनशासन अनुसारी है काम क्रोधवश होय फुधी जिनमतमें दाग लगाते है काम सरे सत्र मेरे देख्ने पारस स्वाम किंकर अरज करत जिन साहिब मेरी ओर निहारो कीजिये रुपा मोहि दीजिये स्वपद कुंथुनके प्रतिपाल कुंथु जग तार सार गुनधारक है केवलजोति सुजागीजी अब श्रीजिनवरके
ग-च-छ गिरिवनवासी मुनिराज मनसिया म्हारे गुरु समान दाता नहि कोई वरननचिह वितार चित्तमें वंदन जिन चवीसकरों चलि सखि देखन नाभिरायघर नाचत हरिनटया चंदनिनेश्वर नाम हमारा, महासेनसुत जगतपियारा बंद जिन विलोकवेत फंद गाल गया चंद्रानन जिनचंद्रनाथके चरन चतुर चित ध्यावतु है चितामणि खामी सांचा साहिय मेरा छवि जिनराई राज
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जगतपति तुम हो श्री जिनराई
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