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“वस्तुये कार्योत्पत्ति मे साक्षात् निमित्त होती है तथा स्वस्वाभिभावादि सम्बन्ध विशेप वस्तु भी कदाचित् परम्परया निमित्त हुआ करती है । इस सम्बन्ध मे उदाहरण के रूप मे निम्नलिखित वाक्य उपस्थित किया जा सकता है
____ "आचार्य श्री कुन्दकुन्द ने अमुक समय में अमुक स्थान पर बैठकर भव्य जीवो के लिये अथवा भव्य जीवो के कल्याण के लिये ताडपत्र पर लोहे की शलाका द्वारा समयसार ग्रन्थ की रचना की।"
इस उदाहरण में समयसार नामक ग्रन्थ (विवक्षित अक्षरो, पदो, वाक्यो और महावाक्यो का विवक्षित क्रम से ताड पत्र पर उत्कीर्ण हो जाना ) ही कार्य है, इसका उपादानकारण ताडपत्र है क्योकि ताडपत्र की ही उस रूप परिणति हुई है, ताडपत्र के उक्त रूप से परिणमनरूप कार्य में आचार्य श्री कुन्दकुन्द कर्ता रूप से निमित्त बने हुए हैं, लोहे की शलाका करण रूप से और भव्य जीव अथवा भव्य जीवो का कल्याण सम्प्रदान रूप से निमित्त बने हुए है। "अमुक स्थान पर बैठकर" इस वाक्याश के 'वैठकर' शब्द से गमन क्रिया को निवृत्ति का वोध होता है अत· जहा से गमन करके अमुक स्थान पर आया गया वह अपादान रूप से तथा वह स्थान जहाँ बैठकर आचार्य श्री ने समयसार की रचना की और वह काल जिस काल में वह रचना की वे दोनो अधिकरण रूप से निमित्त बने हुए है। इसी प्रकार जव भेद विवक्षा से भव्य जीवो का कल्याण इस वाक्यांश में से केवल कल्याण शब्द के अर्थ में ही सम्प्रदानता स्वीकार की जाती है तो वह कल्याण भव्य जीवो का ही हो सकता है इस तरह कल्याण के साथ भव्य जीवो का स्वस्वामि