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ईरण (गति) क्रिया की प्रकृष्टता अन्य द्रव्यो के क्रिया व्यापार के समय उनके वलाधान मे निमित्त होती है।
(६) यद्यपि प० फूलचन्द्र जी की यह मान्यता है कि एक द्रव्य दूसरे द्रव्य के परिणमन मे सहायक नही होता है यानि प्रत्येक वस्तु का प्रत्येक परिणमन उस वस्तु की स्वत सिद्ध योग्यता के आधार पर निमित्त की अपेक्षा किये बिना अपने-आप ही होता है फिर भी उन्होने अपनी इस मान्यता की पुष्टि के लिये कार्योत्पत्ति मे निमित्तो की सार्थकता को सिद्ध करने वाले आदि लौकिक पद्यो का सहारा लिया है।
"तादृशी जायते वुद्धिर्व्यवसायश्च तादृशः । सहायास्तादृशा सन्ति यादृशी भवितव्यता।"
वास्तविक बात यह है कि प० फूलचन्द्र जी ने निमित्तो के विपय मे अपनी जैनतत्त्वमीमासा पुस्तक मे पूर्वोक्त प्रकार जो अस्पष्ट, गलत और परस्पर विरोधी विचार प्रगट किये हैं उनसे यह बात स्पष्ट हो जाती है कि निमित्तो के विषय मे उनकी कोई निश्चित विचारधारा नही है और चू कि कार्य के प्रति निमित्तो की सार्थकता को वे स्वय नही समझ सके है इसलिये उन्हे प्रत्येक वस्तु मे उपादानशक्तिरूप उतनी योग्यतायें स्वीकार करनी पड़ी हैं जितना काल के आधार पर भूत, वर्तमान और भविष्यत् रूप मे उस वस्तु के परिणमनो का विभाग मभव है । इसी आधार पर उन्होने का नियमित पर्याय शब्द का अर्थ करने में भी भूल की है और प्रत्येक कार्य का समय नियत है यह सिद्धान्त भी उन्हे स्वीकार करना पड़ा है।
१. जनतत्वमीमामा पृष्ट ६६ ।