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ही जानता है कि अमुक कार्य मुझे उत्पन्न करना है और वह मेरे प्रयत्न द्वारा अमुक वस्तु मे उत्पन्न हो सकता है इसलिये वह तदनुसाल प्रयत्न करने लगता है। अब यदि उस वस्नु मे उम कार्यरुप परिणत होने की योग्यता है और उसका प्रयत्न भी तदनुकूल हो रहा है तो उसमे उस कार्य की उत्पत्ति पूर्ण निमित मामग्री का सहयोग मिलने पर हो जाती है और यदि ज्म वल्मे उस कातुर्यरूप परिणत होने की योग्यता नहीं हो, या उम व्यक्ति का प्रयत्न उसके अनुकूल न हो अथवा सम्पूर्ण आवश्या निमित्त सामग्री का महयोग प्राप्त न हो तो उससे वह कार्य निप्पन्न नही होगा या जमी योग्यता हो, अथवा जैसा प्रयत्न हो या जैसी निमित्त सामग्री का सहयोग प्राप्त हो वैसा ही गायं उस वस्तु से होगा। अर्थात् वस्तु की योग्यता, व्यक्ति का प्रयत्न और अन्य निमित्त सामग्री का योग मिलने पर ही विवक्षित कार्य की उत्पत्ति हुआ करती है। यही कारण है कि वस्तुगत योग्यता का ठीक-ठीक ज्ञान न होने पर अथवा व्यक्ति को अपनी अगलता के कारण अथवा अन्य निमित्त सामग्री की अनकूलता के कारण व्यक्ति को अनेको चार विवक्षित कार्य की उत्पत्ति मे असफलता ही हाथ लग जाया करती है।
इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि भवितव्यता हो, तदनुकूल उपाय किये जावें और तदनुक्कल अन्य निमित्त सामग्री का सहयोग प्राप्त हो तो विवक्षित कार्य की सिद्धि नियम से होगी, अन्यथा तीनो मे से किसी एक भी कारण का यदि अभाव होगा तो विवक्षित काय की सिद्धि नही होगी।
इस विवेचन से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि प० फूलचन्द्रजी प० प्रवर टोडरमल जी के उक्त कथन से जो 'तादृशी ।