SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 406
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३७० ही जानता है कि अमुक कार्य मुझे उत्पन्न करना है और वह मेरे प्रयत्न द्वारा अमुक वस्तु मे उत्पन्न हो सकता है इसलिये वह तदनुसाल प्रयत्न करने लगता है। अब यदि उस वस्नु मे उम कार्यरुप परिणत होने की योग्यता है और उसका प्रयत्न भी तदनुकूल हो रहा है तो उसमे उस कार्य की उत्पत्ति पूर्ण निमित मामग्री का सहयोग मिलने पर हो जाती है और यदि ज्म वल्मे उस कातुर्यरूप परिणत होने की योग्यता नहीं हो, या उम व्यक्ति का प्रयत्न उसके अनुकूल न हो अथवा सम्पूर्ण आवश्या निमित्त सामग्री का महयोग प्राप्त न हो तो उससे वह कार्य निप्पन्न नही होगा या जमी योग्यता हो, अथवा जैसा प्रयत्न हो या जैसी निमित्त सामग्री का सहयोग प्राप्त हो वैसा ही गायं उस वस्तु से होगा। अर्थात् वस्तु की योग्यता, व्यक्ति का प्रयत्न और अन्य निमित्त सामग्री का योग मिलने पर ही विवक्षित कार्य की उत्पत्ति हुआ करती है। यही कारण है कि वस्तुगत योग्यता का ठीक-ठीक ज्ञान न होने पर अथवा व्यक्ति को अपनी अगलता के कारण अथवा अन्य निमित्त सामग्री की अनकूलता के कारण व्यक्ति को अनेको चार विवक्षित कार्य की उत्पत्ति मे असफलता ही हाथ लग जाया करती है। इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि भवितव्यता हो, तदनुकूल उपाय किये जावें और तदनुक्कल अन्य निमित्त सामग्री का सहयोग प्राप्त हो तो विवक्षित कार्य की सिद्धि नियम से होगी, अन्यथा तीनो मे से किसी एक भी कारण का यदि अभाव होगा तो विवक्षित काय की सिद्धि नही होगी। इस विवेचन से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि प० फूलचन्द्रजी प० प्रवर टोडरमल जी के उक्त कथन से जो 'तादृशी ।
SR No.010368
Book TitleJain Tattva Mimansa ki Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBansidhar Pandit
PublisherDigambar Jain Sanskruti Sevak Samaj
Publication Year1972
Total Pages421
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy