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मैं पूर्व मैं बतला चुका हू कि ससार मे छे प्रकार के पदार्थ हैं - जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल । इनमे भी जीव नाम के पदार्थ अनन्तानन्त सख्या मे है, पुद्गल नाम के पदार्थ भी अनन्तानन्त हैं, धर्म, अधर्म और आकाश नाम के पदार्थो की सस्या एक-एक है तथा काल नाम के पदार्थों की संख्या अख्यात है । इन सब पदार्थों की स्वतन्त्रता का अभिप्राय यह है कि प्रत्येक पदार्थ मे अपने-अपने पृथक्-पृथक् स्वत सिद्ध अस्तित्व, वस्तुत्व, द्रव्यत्व अगुरुलघुत्व, प्रदेशवत्व और प्रभेयत्व नाम के छै गुण पाये जाते है । ये गुण जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल मे तो पृथक्-पृथक् हैं ही, परन्तु अनन्तानन्त जीवो मे से प्रत्येक जीव में, अनन्तानन्त पुद्गलो मे से प्रत्येक पुद्गल मे और असंख्यात कालो मे से प्रत्येक काल मे भी पृथक्पृथक् ही हैं । इसका फलितार्थ यह है कि इन अनन्तान्त पदार्थों मे से कोई भी पदार्थ कभी दूसरे पदार्थ का रूप धारण नही करता है और न कर सकता है इसलिये इनकी संख्या मे न तो कभी कमी हो सकती है और न वढोत्री ही हो सकती है । इसी तरह उपर्युक्त गुणो की स्वत सिद्धता के कारण न तो किसी पदार्थ की कभी उत्पत्ति हुई है और न किसी पदार्थ का कभी नाश ही हो सकता है । अर्थात् सभी पदार्थ अनादिकाल से ससार मे विद्यमान है और अनन्त काल तक विद्यमान रहेगे ।
प्रत्येक पदार्थ मे अपने-अपने पृथक्-पृथक् स्वत सिद्ध उक्त छँ गुण पाये जाते हैं --इसका अभिप्राय यह है कि प्रत्येक पदार्थ का अपना निजो अस्तित्व अर्थात् स्वरूप है । प्रत्येक पदार्थ का अपना निजी वस्तुत्व अर्थात् सार्थकत्व है यानि कोई भी पदार्थ निरुपयोगी नही है । प्रत्येक पदार्थ मे अपनी निजी