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रहता है वही कार्य उत्पन्न होता है । २२२ मायाक उत्त गाया की आचार्य शुभ चन्द्राचार्य जी टीका मे स्पष्ट लिया है कि जिस कार्य के अनुकूल निमित्त गामी का नद्भाव और बाधक कारणों का अभाव होगा वही काय उमसे उत्पन्न होगा। कल्पना कीजिये कि मिट्टी की प्रट कार्य की उत्सति के क्षण से पूर्व दाणक्षणवर्ती वर्याय ने घट को उत्पत्ति होना चाहिये परन्तु उम समय यदि दण्ड का प्रयात उम पर हो जाये तो घटोत्पित्ति न होकर मिट्टी का गबन जावेगा। इस बात को ध्यान में रखकर गाथा का अभिप्राय यही निकलता है शिवायं मे अव्यवहित पूर्व क्षणवती पर्याय कारण याहलाती है और इस पूर्व क्षणवर्ती पर्याय ने उत्तर क्षणवर्ती पर्याय कायं सहनाती है लेकिन कार्य वही उत्पन्न होगा जिसके अनुकूल निमित्त नामग्री का सद्भाव और बाधक मामगी का अभाव वहां पर होगा । इस तरह इन आधार पर कार्यात्पत्ति मे १० फूलचन्द्र जी, प० जगन्मोहन लाल और उनके गमक्षी जनो का निमित्त को अतिचित्कर मित करने व एक निश्चित कार्य की उत्पत्ति स्वीकार कर उमे नियतवाद का जामा पहिनाने का प्रयाग अबुद्धिमत्तापूग
१-द्रर जोगद चन्तु पूर्वपरिणाम युक्त पूर्व पर्याया विष्ट कारणभावेन उपादानकार स्वन यतते, तदेव द्रव्य जीवादि वस्तु उत्तर परिणाम युक्त उत्तर पर्शगायि तदेव द्रव्य पूर्वपर्यायाविष्ट कारणभूत मणिगनादिना अप्रति गद्ध मामन्य कारणातरा बैंकल्पेन उत्तर क्षणे गार्य निष्पादयत्येव । यथा आतान-वितानात्मकान्तय गप्रतिवद्धमागर्ध्या कारणान्तरावं कल्याश्च अन्त्यक्षण प्राप्ता पटस्य कारण, उत्तर क्षणे तु फार्यम् ।