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कारण है कि जब तक श्रुतज्ञान पूर्ण निर्विकल्पात्मक स्थिति को नही प्राप्त होता है तब तक कार्यकारणभाव मे यथासम्भव उपादानोपादेयभाव और निमित्त नैमित्तिकभाव दोनो के विकल्प जीव के होते ही रहते है और कार्य सम्पन्नता के लिए वह उपादान और निमित्त दोनो का अपने-अपने ढग से सहारा लिया करता है | कार्योत्पत्ति मे हमारा अनुभव और प्रवर्तन इसी ढंग से चल रहा है । प० फूलचन्द्रजी, प० जगन्मोहनलाल जी और उनके सपक्षीजन भले ही इस बात की रट लगाते रहे कि निमित्त अकिंचित्कर है, फिर भी उनका अनुभव और उनका कार्योत्पत्ति मे प्रवर्तन उपादानोपादेयभाव और निमित्त नैमित्तिक भाव दोनो को लेकर ही चल रहा है । इससे यह सिद्ध होता है कि " ज जस्स जम्मि देसे" - आदि गाथाओ का उपयोग कार्यसिद्धि के लिए किंचिन्मात्र नही है केवल वस्तु स्थिति को समझने के लिए ही उनका उपयोग हो सकता है जिससे न तो आगम का विरोध है और न कार्योत्पत्ति मे उपादानोपादेयभाव के साथ-साथ निमित्त नैमित्तिकभाव को स्थान देने वाले हम लोगो का ही विरोध है । इतना अवश्य है कि यदि कोई कार्योत्पत्ति मे उपादानोपादेयभाव की उपेक्षा करके केवल निमित्त नैमित्तिकभाव को ही महत्व देता है तो उसका विरोध आगम भी करता है और कार्योत्पत्ति में उपादानोपादेय भाव के साथ-साथ निमित्त नैमित्तिकभाव को स्थान देने वाले हम लोग भी करते हैं क्योकि केवल परप्रत्यय कार्य का निषेध आगम भी करता है और हम लोग भी करते हैं । प० फूलचन्द्र जी आदि के साथ आगम का ओर हम लोगो का जो विरोध है वह कार्य की केवल परप्रत्ययता को लेकर नही है और न केवल स्वप्रत्ययता को लेकर है क्योकि प० फूलचन्द्र जी आदि भी