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पदार्थदर्शन के सद्भाव मे ही होती है अत: इन ज्ञानो मे भी परम्परया पदार्थदर्शन कारण होता ही है। दूसरी बात यह है कि आगम के कथन पर यदि वारीकी के साथ ध्यान दिया जाय तो मालूम होगा कि स्मृति मे धारणा सामान्यरूप से कारण नही होती है किन्तु धारणा का उद्बोध कारण होता है और धारणा का यह उद्बोध मस्तिष्क द्वारा आत्म प्रदेशो मे धारणा का प्रतिविम्बित होना ही है इस तरह कहना चाहिये धारणा की दर्शनरूप स्थिति ही स्मृति मे कारण हुआ करती है। यही वात प्रत्यभिज्ञान आदि ज्ञानो के विषय मे भी जानना चाहिये। इस तरह प्रत्येक ज्ञानदर्शन के सद्भाव मे ही होता है यह सिद्धान्त अखण्डित है। विशेषता इतनी है कि जो ज्ञान पदार्थदर्शन के सद्भाव मे उत्पन्न होते हैं वे तो प्रत्यक्ष कहलाते हैं और जो पदार्थदर्शन के सद्भाव मे न होकर पदार्थज्ञान के दर्शन के सद्भाव मे होते हैं वे परोक्ष हैं। इससे यह निर्णीत होता है कि अवग्रह, ईहा, अवाय और धारणा तथा अवधि, मन पर्यय और केवल ये सभी ज्ञान चूकि पदार्थ दर्शन के सद्भाव में होते हैं अत प्रत्यक्ष है और स्मृति, प्रत्यभिज्ञान, तर्क, अनुमान और श्रुत ये सभी ज्ञान चूकि पदार्थदर्शन के सद्भाव मे न होकर पदार्थज्ञान के दर्शन के सद्भाव मे होते हैं मत परोक्ष हैं।
प्रश्न-जिस प्रकार धारणापूर्वक होने वाले स्मृतिज्ञान को, स्मृतिपूर्वक होने वाले प्रत्यभिज्ञान को, प्रत्यभिज्ञानपूर्वक होने वाले तर्कज्ञान को, तर्कपूर्वक होने वाले अनुमान ज्ञान को और अनुमानपूर्वक होने वाले श्रुतज्ञान को द्रव्यानुयोग (वस्तु विज्ञान) की दृष्टि से परोक्षज्ञान कहा गया है उसी प्रकार अवग्रहपूर्वक होने वाले ईहाज्ञान को, ईहापूर्वक होने वाले अवाय ज्ञान को और अवायपूर्वक होने वाले धारणाज्ञान को. भी