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________________ CO आत्मा का उदाहरण म्वपरसापेक्ष परिणमन के विषय मे विशेष प्रतिपादन को दृष्टि से यहा चौथा उदाहरण आत्मा का दिया जा रहा है परन्तु आत्मा को उदाहरण रूप से प्रस्तुत करने से पूर्व प्रकरण के लिये उपयोगी आत्मतत्त्व पर दृष्टि डालना आवश्यक प्रतीत होता है अत सर्वप्रथम यहा आत्मतत्त्व का प्रतिपादन किया जाता है। आत्मतत्त्व पर दो दृष्टियो से विचार किया जा सकता है-एक तो वस्तु विज्ञान की दृष्टि से और दूसरे अध्यात्मविज्ञान की दृष्टि से । इनमे से प्रथमत वस्तु विज्ञान की दृष्टि से आत्मस्वरूप पर विचार किया जाता है। वस्तु विज्ञान की दृष्टि में आत्मतत्त्व ___वस्तु विज्ञान की दृष्टि मे आत्मा का स्वरूप चेतना है । चेतना मे ज्ञातृत्व, कर्तृत्व और भोक्तृत्व ये तीन शक्तिया गभित हैं। इनको क्रमश ज्ञान चेतना, कर्म चेतना और कर्मफलचेतना नामो से भी पुकारा जा सकता है । यद्यपि जैनागम मे सम्यग्दृष्टि के ज्ञान को ज्ञान चेतना, सम्यग्दर्शनरहित सज्ञीपचेन्द्रिय जीवो के ज्ञान को कर्मचेतना और सभी असजीजीवो के ज्ञान को कर्मफल चेतना कहा गया है परन्तु यह ध्यान मे रखना चाहिये कि जैनागम का यह कथन अध्यात्मविज्ञान की दृष्टि से है वस्तु विज्ञान की दृष्टि से नहीं, अत मेरे उक्त कथन का जैनागम के इस कथन से कोई विरोध नही समझना चाहिये। वस्तु विज्ञान की दृष्टि से देखा जाय तो कहा जा सकता है कि सम्पूर्ण चेतन और अचेतन पदार्थों मे कर्तृत्व और
SR No.010368
Book TitleJain Tattva Mimansa ki Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBansidhar Pandit
PublisherDigambar Jain Sanskruti Sevak Samaj
Publication Year1972
Total Pages421
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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