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________________ viii और हुई तो 'जनतत्त्वमीमांसा की मीमांसा' का द्वितीय भाग और 'जयपुर (खानिया) तत्त्व चर्चा' की समीक्षा भी निर्मित होकर प्रकाश मे आ जावेंगे। मेरा निवेदन सक्षम विद्वानो से तो यह है कि वे जैन सिद्धान्त के लिये घातक सोनगढ विचारधारा को प्रभावहीन वनाने के अनुकूल ठोस साहित्य का उचित ढग से निर्माण करें और धनिको से यह है कि वे आज के समय मे अनुकूल रुचि परिवर्तन करके आवश्यक कार्यों में ही अपने धन का उपयोग करें जिससे जैन सस्कृति का सरक्षण हो सके। 'जनतत्त्वमीमासा की मीमासा' जैन संस्कृति सेवक समाज की ओर से हो रही है इसके लिये मैं उसका अत्यन्त आभारी हूँ। जन सस्कृति सेवक समाज के प्रधान मन्त्री प० राजेन्द्र कुमार जी के अदम्य उत्साह और पुरुषार्थ का ही यह फल है। प० वालचन्द्र जी शास्त्री साहित्य सम्पादन विभाग वीर सेवा मन्दिर के सुझाव के अनुसार आवश्यक' विषय सूची भी तैयार करके इसमे जोड दी है जिससे विषय को ग्रहण करने मे पाठको को सुविधा प्राप्त होगी। यद्यपि पुस्तक के अन्त मे मुझे आवश्यक शुद्धि पत्र जोडना पडा है तथा ऐसी अशुद्धियाँ अव भी इसमे हैं या हो सकती हैं जिनका सुधारना उचित था, परन्तु प्रफ सशोधन कर्ता के प्रयास की सराहना किये बिना मैं नही रह सकता है क्योकि सशोधन मे किये गये उनके प्रयास से मुझे अत्यन्त सतोष है । प्रेस परिवार को भी मैं धन्यवाद देता हूँ। पाठको को मैं यह सूचना देना आवश्यक समझता हूँ कि जिस रूप मे लेखमाला जैनगजट मे प्रकाशित हुई थी उसके
SR No.010368
Book TitleJain Tattva Mimansa ki Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBansidhar Pandit
PublisherDigambar Jain Sanskruti Sevak Samaj
Publication Year1972
Total Pages421
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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