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विच्छेद
एक बुजुर्ग वहुत दूर से आए हैं। सिर्फ इसीलिए थाए है। परिवार के हितैषी है और जब सकट की बात सुनी तो उनसे रहा नही गया । दो-तीन रोज भी वडे बैचेनी से कटे । ग्रत मे वायुयान से यहा श्रा पहुचे ।
उन्होने एकान्त मे सविता से पूछा, "सवि । तुम वहू हो, लेकिन उससे भी अधिक मेरे लिए वेटी हो । सुनता हू बात जरा सी है, उसको मान जाती तो क्या हरज था ? तुम लोगो के परिवार की क्या जगह है, तुम जानती हो । वह टूटे, इसको कैसे बर्दाश्त किया जा सकता है । कहो, मेरी एक बात रख सकोगी ?"
सविता गुमसुम बैठी रही, वह कुछ न बोली । पैंतीस वर्ष की अवस्था होगी। दो बच्चो की माता है । कन्या का विवाह भी हो चुका है । फिर भी वह कुछ नही वोली ।
बुजुर्ग कुछ देर तक उत्तर की राह देखते रहे । फिर आप ही वोले, "मैं जानता हूं, तुम्हे इस समय कितना कष्ट होगा । श्रवश्य कुछ गहरी वात होनी चाहिए कि तुम मान नही पाती हो । मैंने सुना है, सारा परिवार असहमत है । तुम अकेली पड गई हो अपनी बात मे । जरूर उसमे कुछ सत् होगा कि तुम अकेली सबके सामने टिक सकी हो । लेकिन वेटा, घर की इज्जत बड़ी चीज होती है । उसमे मन को थोडा झुकाना पडे, तो इसमे कुछ हरज तो है नही । वल्कि इसी मे गृहिणी की शोभा है । हमारी भारत की संस्कृति पारिवारिक है । इसी से वह सब तरह की परिस्थितियो के इतिहास मे मे अब तक समयं बनी चली भाई है। परिवार मजबूत नही है तो समाज श्राप ही विसरा हो जाता है ।