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विक्षेप
रहा है। पागल है कि देखो कि करने को बस सभा ही कर पाते हैं।
और यह कौन है कि जो बीच मे बैठा है । आखो पर चश्मा हैं और चमकती चाद है । कैसा बैठा है कि हस तक नहीं रहा है । लगता है कि हस ही नहीं सकता है। जैसे आटे का न हुआ ज्ञान का ही पिंड हो । जान की जगह उसके अन्दर कुछ वह हो जो जड पडकर सिल हो गयी हो।
एकाएक अट्टहास हुमा । लोग चौंके । सवका ध्यान उधर गया जिधर जाना था। लेकिन जोर के ठहाके के बाद वह अाख मीचकर अपने सामने के सुमेरु के आगे हाथ जोड कर नमन करने लगा था । बराबर से स्वयसेवक फिर लपकने को हुआ। पर व्यवस्थापक की ओर से सकेत हो गया कि जाने दो, जाने दो।
सब शान्त था और उसकी पाखें खुल पाई थी। उसने देखा कि वक्ता हाथ जोड रहा है। अपनी जगह से उसने हाथ जोडे । तभी सुनाई दिया कि तालिया बज रही है। उसने भी ताली बजाई । लेकिन एकाएक क्या देखता है कि यत्र के सामने का स्थान खाली है। बोलने वाला लौट गया है और तालिया पीछे से वजी जा रही हैं।
ठीक है । ठीक यही अवसर है। सबको इसी की प्रतीक्षा है। पागल हैं तो भी मेरी प्रोक्षा मे है । बच्चे हैं और उन पर दया करने को चलना होगा। कुछ कहना होगा। कहना होगा और बताना होगा। बताना होगा कि यह सब नहीं है कि जो है । प्रमच है वह सब जो तुम फरते रहे हो और करते रहते हो । देखो, यह मैं प्राता हूँ और बताता है । बताता हू कि ..
यह अपनी जगह से उठा । अपने नीचे की साफी उठाई, फिर समझ कर उसने उने यही छोड़ दिया। अब वह गिनती की सीडिया चढता हुमा मच पर पहुचा । पहुचा, पहुचा कि गर्दन पर उनके एक कसा हाथ पडा । गर्दन दबोच ली गई थी और उसे ठेल कर बरबस एक ओर ले जाया जा रहा था । गरदनिया वाता हाथ चाहे एक ही रहा हो,