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चक्कर- सदाचार का
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रोज वे तीन हजार मासिक की बना देगे, उस रोज से वह अवश्य सदाचार शुरू कर देगा । और जिस समिति मे कहो, होने की योग्यता पा जाएगा | फिर अनुमति का सवाल नही रह जायेगा । वल्कि समितियो पर होने की श्रातुरता उसमे होने लग जाएगी । ऐसे न देखो, जैसे मैं बात अनोखी कह रहा हू । बताओ तुम्हारी आमदनी कितनी है ? - बता भी । "
...
"जी ?"
" अरे भई, मैं इन्कमटैक्स का आदमी नही हू ।"
"जी 'जी नही ।"
"छोडो छोडो, मैं देख सकता हू कि तुमने अपने लिए सदाचार का काम जो चुना है सो ठीक चुना है । आमदनी तुम्हारी ठीक ठाक लगती है । इसलिये तुम्हारा चुनाव भी ठीक है । लेकिन अगर ग्रामदनी ठीक नही हो तो फिर उसको ऊची और काफी बनाने के लिए भी उस कार्यक्रम का चुनाव मुनासिब समझा जाएगा। यानी तुमको देखना चाहिए कि हर तरफ से सदाचार का सम्बन्ध समीचीन ग्राय से हो जाता है।
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मैं शर्मा जी को अविश्वास की निगाह से देखता रह गया । कहते कहते यह खडे हो प्राये । मानो उन्होने पहचान लिया कि मैं चला जाना चाहता हूँ और मानो वह भी अपनी ओर से विदा के लिए तत्पर है ।
उन्होने कहा - " लेकिन सदाचार के साथ दुराचार भी ग्रामदनी को चढाने चढाने की कोशिश में होता बताया जाता है ।" मेरे भाई, यही मुश्किल है । माफ करना, तुम्हे में कोई सीधा जवाब नही दे सकता । सदाचार विना वढी चढी घाय के हो नही सकता । वही चढी आय के लिए ही फिर दुराचार किया जाता मालूम होता है। इसलिए मैं तो चक्कर मे हु । लेकिन तुम लोगों के प्रयत्नो की सफलता चाहता हू ।"
मैं सुद चक्कर मे हो प्राया । सडा हुआ तो सचमुच जैने घिरनी श्रा गई। मैं कुछ बोल नही पाया । ठीक तरह बिदा का अभिवादन भी नही