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अनेन्द्र पी महानिमा दगा माग
मारमा जाते हैं।"
लीलाधर गरेदीये । गोचा किस राम मार ही है। लगाई बार का चार, जन्मदिन को उछाह का चमार, सवागन के पपगप्रजापान और विज्ञापन का गर। और राग अन्न में यह गोहमा चकर । लेकिन मौत पर भी पगार समाप्त नहीं है पमोरि गरने में मरने वाले की छुट्टी हो जानी हो, नीने वालों को एट्टी मना है? ___"पा मोच न्हे हो ? पर दो सम्पताल पालो को गिम कुछ नती जानने।"
लीलाधर ने गोमा मिटीक पली गी यान ही है। जो मुर्श हो गया है, उगर कोई यो जानेगा, या उनमा पोई पपा जानेगा ?
हो. फोन मे गयो नही पर देने हो धम्पनास पानी मी!" या गलो, अप मार जायो । अपने माप करते फिरेंगे।"
पत्नी को नीलार गे देगा । यही थी जो अपार जमुगिया दह की अन गमन र नन्द की पग्नियाँ कमी की थी। देर यह मनी मी, गात गेमिट पाईयो । यह देह पप निक न गभान नी । जगमे गाना नाना की भी जिनकी। पदारसे पर पशि जी और रारदी। पर उसी को पोसना, कपडे पाना, नो पामगार और प्रना मत-मताने माग
मन पनी मोगनिम मान-मन पायापारण भर शिरापोरवालों पर भार नो गुरतमा पाराम गामा । मनोनदा र पानसार नागतीलो नहोमी र मन्ने ?'
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