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________________ २०३ " काल-धर्म . इसी समय नगर में घुड़सवार सैनिक गश्त करने लगे और पदाधिकारी जगह-जगह जाकर लोगों को समझाने लगे। इन प्रयत्नों से जनता के अनिश्चय को एक दिशा प्राप्त हुई और वह रोष में परिवर्तित होने लगी। जगह-जगह शान्ति-भङ्ग की घटनाएँ हुई और जनता पर शस्त्र-प्रहार हुआ। इस पद्धति से, एक अतयं भाव से जनता में संकल्प का उदय हुआ कि उस मैदान में अब सभा अवश्य होगी। संक्षेप में सभा हुई और सिर फटे और गिरफ्तारियाँ हुई और ज्ञात हुआ कि लोकतन्त्र शासन की असमर्थ पद्धति नहीं है। विद्रोह शान्त हुआ । विज्ञापित हो गया कि राजतन्त्र का अब सदा के लिए नाश हो गया है । लोकतन्त्र चिरजीवी हो । विद्रोह के दमन के अनन्तर बलाधिप खड्गसेन सत्ताधीश हुए और गुरु चक्रधर प्रधान सचिव नियुक्त किए गए। इस प्रकार एक युग बीता । किन्तु काल-धर्म गतिशील है और सब में विकास होता है। शासन-पद्धति अचल नहीं रह सकती। मालूम हुआ शस्त्र-बल ही अतीत का स्मारक है, उसके आधार पर चलने वाला शासन उस काल की याद दिलाता है, जब मनुष्य असभ्य था । शस्त्र-बल पशु-बल है । नीति-बल ही सही शासन का श्राधार होना चाहिए। इस प्रकार के विचारों का प्रचार इतनी तीव्रता से हुआ कि सुना गया कि एक सिपाही ने सत्ताधीश खड्सेन की हत्या कर दी है। तब शासन-चक्र गुरु चक्रधर के आधीन हुआ । उन्होंने मानव-धर्म शासन की शिक्षा को सब शालाओं में अनिवार्य कर दिया और एक ऐसी शासन-व्यवस्था को जन्म दिया जहाँ सत्ताधिकारी नीति और शासन दोनों का एक ही साथ उद्गम समझा जाता था। ईश्वर अब ओट में हो गया
SR No.010356
Book TitleJainendra Kahani 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvodaya Prakashan
PublisherPurvodaya Prakashan
Publication Year1953
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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