________________
देवी-देवता
एक बार, जब दुनियाँ में प्राणी की भी उत्पत्ति नहीं हुई थी, तब, स्वर्ग लोक में घमासान मचा । देवियों ने देवताओं से असहयोग ठान लिया । कहा, "हम देवी नहीं रहना चाहतीं, हम स्त्री होना चाहती हैं । मनोरंजन में ही क्या हमारी सार्थकता है ? हम कर्म चाहती हैं । सतीत्व क्यों हमें दुष्प्राप्य है ? और सन्तति-पालन का कत्तव्य हमारे लिए भी क्यों नहीं है ?"
देवता लोगों की बड़ी मुश्किल हुई । उनका जीवन क्या था, श्रामोद ही था। अप्सरा उस आमोद की प्रधान केन्द्र थी। अप्सरा ने सहयोग खींच लिया, तब देवता का जीवन ही निराधार होने लगा। उसका रस उड़ गया। वह खोया-सा, व्यर्थ-सा, अपने को लगने लगा।
किन्तु फिर भी कुछ काल तक देवता लोग अपनी अस्मिता में डटे रहे। सोचा, देवियाँ न मुकेंगी तो करेंगी क्या ?
कुछ दिन बाद देवियों को भी लगने लगा कि असहयोग कदाचित् ठीक नहीं है । लेकिन हारें तो देवी कैसी ? तब सभाएँ