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प्रकाशक की ओर से
जैनेन्द्र जी की कहानियाँ विचार-प्रधान होती हैं। वे किसी-नकिसी ऐसे मूल विचार-तत्त्व को जगाती हैं, जो जीवन की जागृत समस्याओं की अतलस्पर्शी गहराई में सोया रहता है। जैनेन्द्र की यह दार्शनिकता कहानियों में जीवन की जटिल-से-जटिल प्रन्थियों के सूत्र सुलझा देती है। जीवन-रस और विचार-रस दोनों एक साथ अपने पूरे सौष्ठव के साथ इन दार्शनिक कहानियों में व्यक्त हुए हैं। इस संग्रह की 'तत्सत्', 'देवी-देवता', 'लाल-सरोवर' आदि लगभग सभी कहानियाँ प्रतीकात्मक हैं। देखने में तो वे लोककथाओं की तरह रोचक हैं, किन्तु उन सब में से प्रत्येक में किसीन-किसी जीवन-सत्य की ओर संकेत है।
इनमें जीवन के वैविध्य में बसने वाले सत्य के विविध पहलुओं को उजागर किया गया है। इन कहानियों में जैनेन्द्र जी का यह कथन कि 'भाव उसमें (कहानी में) प्रधान है, पदार्थ प्रधान ।