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जैनेन्द्र की कहानियाँ [तृतीय भाग ]
तब से वह विश्व की संहार - लीला में प्रभु का यशोगान करते
हुए विचरण ही करते आ रहे हैं । इसी भाँति ऋषि नारद अपनी वेदना को आनन्दमय और अर्थमय और इकतारे की गूँज के के साथ उसे अर्घ्यमय बनाते और माता के चरणों में होम देते हैं ।
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