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जैनेन्द्र की कहानियां [द्वितीय भाग] बड़ी-सी निराशा के रूपमें प्रत्यक्ष हो गई। कल जो दो व्यक्ति
आपस में इस तरह उलझे हुए थे, आज उन्हीं के वीच असम्भाव्यता का ऐसा व्यवधान फैला हुआ है कि पुर नहीं सकता। और कल उन्हें एक-दूसरे को भुलाकर अपना समय बिताने की और कुछ तरकीब निकाल लेनी होगी। श्याम को अपने 'मामा' को भुलाकर उसके अभाव में ही अपने तई जीवित और प्रसन्न रखना होगा। इसी तरह श्याम को भुलाकर रामेश्वर को भी नित्य नियमित जीवन-कार्य में लग जाना होगा। ____ कम्पनी-बारा में सिर झुकाये हुए, लम्बे-लम्बे डगों से पाँच-छः मिनट सोचते-सोचते इधर-उधर घूमने के बाद, रामेश्वर ने घर
आकर माँ से कहा, "अम्मा जो कहोगी सो करूँगा । आज्ञा हो तो नौकरी कर लूँ।"
अम्माँ ने कुछ नहीं कहा, बस प्यार किया । उस प्यार का अर्थ था,"बेटा, जो चाहे सो कर । माँ के लिए तो तू सदा बेटा ही है।"
और कार्य के अभाव में, रामेश्वर, अनवरत उद्योग से साहित्यसमालोचक और राजनीतिक नेता बन बैठा ।
लाहौर की जिला-कान्फ्रेंस के अध्यक्ष के आसन पर से अपना भाषण समाप्त कर चुकने के बाद, अधिवेशन की पहले दिन की कार्रवाई समाप्त करके जब रामेश्वर अपने स्थान पर आया, तो उसके कोई पन्द्रह मिनट बाद उसके हाथ में एक चिट्ठी दी गई
"क्या मुझे चार बजे पार्क में मिल सकोगे?-श्याम की अम्माँ।" अलीगढ़ वाले सफर के दिन से तीन सौ पैंसठ के छह-गुने दिन