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फोटोग्राफी
५६ पहना और अपने कपड़ों की सलवट ठीक कर बच्चे के पास श्रा बैठी। __रामेश्वर के पास खाली स्लाइड थी। उसने फोकस लगाया, श्याम को लेंस दिखाकर कह रखा, 'इसमें से चिड़िया निकलेगी।' फिर नियमित रूप से एक-दो-तीन किया और कह दिया, “फोटो खिंच गई।"
तमाशा था, खतम हुआ। रामेश्वर जब कैमरे को बन्द करके. रख देने की तैयारी में था, तो उससे कहा गया, "लाइए, तस्वीर दीजिए।"
वह बड़ी उलझन में पड़ा। तस्वीर खींची ही कहाँ थी ? वह तो झूठमूठ का तमाशा था। स्लाइड तो खाली थी और तस्वीर खिंचती भी तो दी कैसे जा सकती थी ? उसे तैयार करने में अभी तो कम से कम दो दिन और लगते; पर उसने फिर सुना, "जितने दाम हों ले लीजिए, तस्वीर दे दीजिए।"
उसकी घबड़ाहट बढ़ती जा रही थी। क्या वह कह दे तस्वीर नहीं खींची गई, वह तो सिर्फ धोखा था और तमाशा था ? नहीं, वह नहीं कह सकता? माँ ने कितनी उमंग के साथ अपने बालक की
और अपनी तस्वीर खिंचवाई है ! क्या वह सच-सच कहकर उनके मनको अब मार देगा ? नहीं, सच बात कहना ठीक नहीं ।
"देखिए, यह ठीक नहीं है, तस्वीर दे दीजिए।"
रामेश्वर ने कहा, "तस्वीर अभी कैसे दी जा सकती है ? उसे धोना होगा, छापना होगा तब कहीं वह तैयार होगी।"
माँ ने कहा, "धोनी होगी ? खैर, हम लाहौर में धुलवा लेंगे।"
रामेश्वर बोला, "जी नहीं, उसे जरा-सा प्रकाश लगेगा कि वह खराब हो जायगी ?"