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प्रात्मशिक्षणा
महाशय रामरत्न को इधर रामचरण के समझने में कठिनाई हो रही है । वह पढ़ता है और अपने में रहता है । कुछ कहते हैं तो दो-एक बार तो सुनता ही नहीं । सुनता है तो जैसे चौंक पड़ता है। ऐसे समय, मानो विघ्न पड़ा हो इस भाव से वह मुँझला भी उठता है । लेकिन तभी मुँझलाने पर वह अपने से अप्रसन्न भी दीखता है और फिर बिन वात, बिन अवसर वह बेहद विनम्र हो जाता है।
यह तेरह वर्ष की अवस्था ही ऐसी है । तब कुछ बालक में उग रहा होता है। इससे न वह ठीक बालक होता है, न कुछ और । उसे प्यार नहीं कर सकते, न उससे परामर्श कर सकते हैं। तब वह किस क्षण बालक है और किस पल बुजुर्ग, यह नहीं जाना जा सकता। उसका आत्मसम्मान कहाँ रगड़ खा जायगा, कहना कठिन है। उससे कुछ डरकर चलना पड़ता है। - रामरत्न की बात तो भी दूसरी है। घर में अधिक काल उन्हें नहीं रहना होता। सबेरे नौ बजे दफ्तर की तैयारी हो जाती है
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