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पाजेब
समय बालक पर करुणा हुई। लेकिन आदमी में एक ही साथ जाने क्या-क्या विरोधी भाव उठते हैं। __मैंने उसे जगाया। वह हड़बड़ाकर उठा। मैंने कहा, "कहो क्या हालत है ?" ___ थोड़ी देर तक वह समझा ही नहीं । फिर शायद पिछला सिलसिला याद आया । झट उसके चेहरे पर वही जिद, अकड़ और प्रतिरोध के भाव दिखाई देने लगे।
मैंने कहा कि या तो राजी-राजी चले जाओ नहीं तो इस कोठरी में फिर बन्द किए देते हैं।
आशुतोष पर इसका विशेष प्रभाव पड़ा हो ऐसा नहीं मालूम हुआ। - खैर, उसे पकड़कर लाया और समझाने लगा। मैंने निकालकर उसे एक रुपया दिया और कहा, “बेटा इसे पतंग वाले को देना और पाजेब माँग लेना । कोई घबराने की बात नहीं। तुम तो समझदार लड़के हो।"
उसने कहा कि जो पाजेब उसके पास नहीं हुई तो वह कहाँ से देगा? ___"इसका क्या मतलब, तुमने कहा न कि पाँच आने में पाजेबदी है ! न हो छुन्न को भी साथ ले लेना । समझे ?' ___वह चुप हो गया । आखिर समझाने पर जाने को तैयार हुआ। मैंने प्रेमपूर्वक उसे प्रकाश के साथ जाने को कहा । उसका मुंह भारी देखकर डाँटने वाला ही था कि इतने में सामने उसकी बूआ दिखाई दी।
बूबा ने आशुतोष के सिर पर हाथ रखकर पूछा कि कहाँ जा रहे हो, मैं तो तुम्हारे लिए केले और मिठाई लाई हूँ।