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जैनेन्द्र की कहानियां [द्वितीय भाग] श्रीमती झल्ला कर बोली कि हो चुका बस कुछ तुमसे । तुम्ही ने तो उस नौकर की जात को शहजोर बना रखा है । डाट न फटकार, नौकर ऐसे सिर न चढ़ेगा तो क्या होगा ? __बोली कि कह तो रही हूँ कि किसी ने उसे बक्स में से निकाला ही है । और सोलह में पन्द्रह आने यह बंसी है । सुनते हो न, वही है। ____ मैंने कहा कि मैंने बंसी से पूछा था । उसने नहीं ली मालूम होती। ___इस पर श्रीमती ने कहा कि तुम नौकरों को नहीं जानते । वे बड़े बँटे होते हैं । जरूर बंसी ही चोर है । नहीं तो क्या फरिश्ते लेने आते। __ मैंने कहा कि तुमने अाशुतोष से भी पूछा ?
बोली पूछा था । वह तो खुद ट्रक और बक्स के नीचे घुसघुसकर खोज लगाने में मेरी मदद करता रहा है। वह नहीं ले सकता।
मैंने कहा उसे पतंग का बड़ा शौक है ।
बोली कि तुम तो उसे बताते-बरजते कुछ हो नहीं । उमर होती जा रही है । वह यों ही रह जायगा । तुम्ही हो उसे पतंग की शह देने वाले।
मैंने कहा कि जो कहीं पाजेबही पड़ी मिल गई हो तो? बोली कि नहीं, नहीं, नहीं ! मिलती तो वह बता न देता ? .
खैर, बातों-बातों में मालूम हुआ कि उस शाम आशुतोष पतंग और एक डोर का पिन्ना नया लाया है।
श्रीमती ने कहा कि यह तुम्ही हो जिसने पतंग की उसे इजाजत दी। बस सारे दिन पतंग-पतंग । यह नहीं कि कभी उसे बिठाकर