SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 237
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २२२ जैनेन्द्र की कहानियाँ [द्वितीय भाग] __"ऐसा कौन गिन्नी ले सकता है ?"-दादी ने सोचा-रधिया चौके और दालान से उठ कर इधर आई नहीं । और अभी घण्टा भर हुए ही तो मैंने सम्भाल कर रक्खीं थीं। कहीं गिर ही तो नहीं गई ? देखू । उसने देखा अब बात यह है कि एक नाम भीतर से उठ कर ऊपर आना चाह रहा है । पर जैसे उस नाम को इस सम्बन्ध में अपने सामने पाना उसे पातक लगता है, यह किसी तरह सिद्ध हो जाय कि गिन्नी गिर ही पड़ी थी। उसके मन में यह निरन्तर बज रहा है कि “ऐसा नहीं है, ऐसा नहीं है, है।" "गिरी नहीं है और चोरी करने वाला वही एक है" पर इसी बात को अपने निकट अस्वीकृत करने के लिए उसने फिर खोजा और फिर देखा । -पर, गिन्नी को न मिलना था, न मिली। . रमचन्ना पर अविश्वास करना उसे स्वयं अपने प्रति लाँछन मालूम होता है। पर कितना ही सोच देखे, क्या कोई और है जो इस बीच उसकी कोठरी में आया गया है, और जिसके लिए तनिक भी सम्भावना है कि गिन्नियों के अस्तित्व को जाने ? रामचरण, अर्थात्-रमचन्ना, बारह बरस की उमर से इनके यहाँ नौकर है । अब उसको अवस्था तीस पर पहुँचती होगी। यों तो यही उमर है जब गिन्नी की कीमत की आदमी को खूब पहचान हो; पर ठीक यही उमर भी है, जब रामू की दादी को वह अतीव आकर्षक, प्रिय ओर अनिवार्य लगता है। रमचन्ना बेहद घर का आदमी है । इस घर के काम या जरूरत के मौके पर वह सदा ऐसे ही काम आता रहा है, जैसे सोने का नेवर । छोटे से यहीं बड़ा हुआ है । उसका ब्याह इसी घर के लोगों
SR No.010355
Book TitleJainendra Kahani 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvodaya Prakashan
PublisherPurvodaya Prakashan
Publication Year1953
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy