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________________ २२० जैनेन्द्र की कहानियां [द्वितीय भाग] वाला आकर एक तार दे गया। परमात्मा की दया देखो कि कैसी विचित्र है । तार में है कि शरबती मर गई है। तार वाला अभी गया है । शरबती मेरी अपनी बेटी थी। इकलौती तो आप यों न कहने देंगे कि विजय भी मुझे मिला था, जो बचपन में ही मुझ से लुट भी गया । तो भी लगभग जीवन-भर शरबती को इकलौती ही समझता आया हूँ। छोटे-छोटे चार बच्चे छोड़ गई है । खैर... तार पाकर मुझे बिल्ली-बच्चे की बात याद हो आई। सो आपको सुना दी है। मुझे आशा है, कहानी-सुनकर आप कहानी-लेखक होने से सदा बचेंगे।
SR No.010355
Book TitleJainendra Kahani 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvodaya Prakashan
PublisherPurvodaya Prakashan
Publication Year1953
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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