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अनन्तर
कैसा भोला चेहरा मालूम होता था। मैंने पाहिस्ते से उसके हाथ को चूमा । वह सो रहा था, सोता ही रहा । मैं अचक पाँव चला आया।
खाट पर लेटे-लेटे क्या मुझे नींद आ गयी । शायद । पर वह रात जैसे महाकाल की ही रात थी। सारी रात गूंज ही गूंज सुनता रहा, 'राम नाम सत्य है, राम नाम सत्य है ।' कितनी अर्थियाँ उस रात निकलीं मानों वह रात शव-यात्राओं के लिए ही थी। कितनी न जाने ऐसी यात्राएँ निकलीं और कितने यात्री हर एक के साथ पुकारते जाते थे, 'राम नाम सत्य है ।' मानों इस राम के नाम-रूप सत्य को अपने प्रियजन की जान देकर उन्होंने अभी पाया हो और चिल्लाकर उसे मौत के कानों तक पहुँचा देना चाहते हों। ___ "अरे भाइयो, बोलो, 'राम नाम सत्य है !' जोर से बोलो जोर से।"
देखता हूँ कि सामने जो अर्थी का जुलूस जा रहा है, उसी में से सहसा एक आदमी ने हाथ फेंक कर कहा ।।
इस पर लोगों ने जोर से गुंजारा, "राम नाम सत्य है !"
उस आदमी का सिर घुटा हुआ था । उसे उन्माद प्रतीत होता था । उसने कहा, "धीमे नहीं, जोर से बोलो। बोलो 'राम नाम सत्य है !' लोगों ने जोर से पुकारा 'राम नाम सत्य है !" । ___ उस आदमी का चेहरा डरावना मालूम होता था। मुझे प्रतीत हो गया कि अर्थी पर जिस स्त्री का शव है वह उसी की पत्नी थी। ___ उस आदमी ने आवेश से कहा, "भाइयो, धीमे न पड़ो; बोलो 'राम नाम सत्य है !" लोगों ने भरसक जोर से कहा, "राम नाम सत्य है !"
मैं उस गूंज पर सहम-सा आया । इतने में देखता हूँ कि वह