________________
पढ़ाई
१८५ कर पाए और उसे अपनी लड़की सौंप डाले । यह जिम्मेदारी, वह बहुत कम क्षण भूल पाती है। ____ मैं लिख रहा था; उन्होंने श्राकर कहा, “तुम तो देखते नहीं हो,
और नूनी यों ही रह जायगी। पढ़ने-लिखने में उसका चित्त नहीं है । और तुम घर से बैरागी बने हो । क्यों नहीं बुलाकर उसे जरा कुछ कहते ?"
मैंने कहा, "अभी छः बरस की ही तो है।" “यों ही बीस बरस की भी हो जायगी।..."
मैंने हँसकर कहा, “यों ही तो बीस बरस की कैसे हो जायगी। चौदह बरस बीच के काट लेगी तब होगी।" __"तुम तो यों ही कहते हो। मैं कहती हूँ, नेक उसका ख्याल भी रख लिया करोगे तो कुछ तुम्हारा बिगड़ नहीं जायगा।"
मैंने कहा, "अच्छी बात है।" "अच्छी बात नहीं है...” मैंने कहा, "अच्छा, अच्छी बात नहीं है।" होते-होते वह सचमुच बिगड़ने-सी लगीं।
मैंने कहा, "तुम उसे नूनी फिर क्यों कहती हो ? नाम तो उसका सुनयना है । नूनी बनकर वह खिलवाड़ नहीं छोड़ सकती।
और तुम कहना चाहती उसे नूनी हो, फिर चाहती हो, खेलना छोड़ दे। अर्थात् नूनी रहना छोड़ दे। तुम उसे नूनी रखना छोड़ दो, वह भी श्राप छोड़ देगी।" ___"हाँ, मैं सुनयना नहीं, और कुछ कहूँगी! तुम्हारी मत कैसी है कि उल्टे मुझे ही कहते हो, यह नहीं कि उसे नेक बुलाकर समझा देते।"
मैंने कहा, "अच्छा, अच्छा, तुम चाहती क्या हो ?"