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तमाशा
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बनकर दाखल होने का अपराध लेकिन पैरों से ही अधिक होता है। टाँगें, न जाने क्यों, कभी सीधी होकर लेटती नहीं है, और पैरों को उन हाथों की पकड़ में आने देने से डरती नहीं हैं। हाथ एकाध बार तो जैसे देखी-अन-देखी करते हैं। लेकिन जब दूसरे के राज्य में बिल्कुल गैर-कानूनी तौर पर बेजा मदाखलत करने से ये पैर बाज ही आते नहीं मालूम होते तो कर्तव्यवश हाथों को उनके अँगूठे-रूपी कानों से पकड़कर मुँह के दर्बार में ले जाना होता है। मुँह तक चूसचास कर उनका संस्कार करते हैं, और दन्तविहीन पपोटों से दबाकर मानो यह चेतावनी देते हैं-'अब तो इतना ही। लेकिन अब पा रहे हैं दाँत । सशस्त्र हो जायँ हम, तब कहीं फिर शरारत मत कर बैठना । नहीं तो तुम्हारे चोट लगेगी । जाओ तुम अब ।' फैसला हो जाने पर फिर हाथ-पुलिस अपनी पकड़ ढीली कर देती है, और पैर छिटक कर दूर भाग जाते हैं। ___अभियुक्त बरी कर दिया गया था, अदालत का घर खाली था, पुलिस की पकड़ में कोई अपराधी आता नहीं था। अब माल की और काम की जरूरत है। तभी आ गई सबेरे की डाक ।
इनमें से जरूर कोई शिकार हाथ में आना चाहिए । बालक की आँखें उस माल पर लग गई।
विनोदने एक हाथ से बालक को गोदी में कुछ और निकट ले लिया । दूसरे को सामने किया ।
नौकर ने डाक लाकर उस हाथ पर रखी। तभी बालक ने झपट्टा मारा। झपट्टा पड़ा ओछा, हाथ तक पहुँचा भी नहीं। विनोद ने कहा, "अरे, ठेर रे, काठ के..." लेकिन बड़ी सख्त जरूरत है कुछ-न-कुछ के मुंह में पहुंचाने