SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 35
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ५ ) स्थान पर पैदा होने वाले अन्य देव को पनि बना लेती है, यह यात नो बिलकुल नत्य है। जैसा कि प्रादिपुगण के निम्न लिखित लोगों से मालम होता है :भीमः माधुः पुरे पडगेकिंगयां चातियातनान् । ___-पर्व०४ालो० ३४ः । गन्ये शिकरोद्याने पंचममान पूजित । तस्थिवाँस्नं ममागन्य चतबो देवयापितः ॥ ४६॥ ३४६ बंदित्वाधर्ममावगर्य पापाढम्मत्पनिमतः। त्रिलोकेशवदाम्माकं पनिः कोन्या भविष्यति ॥४३५०॥ पुण्डरीकपुर के शियंकर नामक बगीचे में मीम नामक साधु को घानिया की के नाश करने से कंबल बान हुआ। उन के पास चार देवाइनाएं आई। यन्दना की, धर्म सुना। फिर पूछा-हे त्रिलोकेश! पापकर्म के उदय मे हमाग पनि मर गया है, इसलिये कहिये कि हमाग दमग पनि कौन होगा? ग्रह वान टुमरी है कि बहुनसो देवानाओं को विधवा नहीं होना पडना, इममे दुसरा पति नहीं करना पड़ता। परन्तु जिन्हें करने की जरुरत होती है वे दूसरे पनि का त्याग नहीं कर देती। हाँ, देवाननाएँ दूसरे देव को नहीं पकडती, अपने नियोगी का ही पड़ती हैं: सो यह बात कर्मभूमि में भी है । मध्यलोक में भी नियोगी के साथ ही दाम्पत्यलम्बन्ध होता है। हाँ, देवगति में नियोगी पुरुष और नियोगिनी स्त्री का चुनाव (नियोग= नियुक्ति) व ही कर देता है जबकि कर्म. भृमि में नियोगी और नियोगिनी के लिये पुरुषार्थ करना पडना हैं। सो इस प्रकार का पुरुषार्थ विधवाओंके लिये ही नहीं करना पड़ता, कुमारियों के लिये भी करना पड़ता है। देवकृत और प्रयत्नकृत नियोग की बात से हमें कुछ मतलब नहीं। देखना यह है कि देवगति में देवियाँ एक देव के मरने पर
SR No.010349
Book TitleJain Dharm aur Vidhva Vivaha 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSavyasachi
PublisherJain Bal Vidhva Sahayak Sabha Delhi
Publication Year1931
Total Pages247
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy