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________________ (१६) दोनों का विवाह हो सकता है। इसलिये सुधारकों के लिये "विवाह योग्य स्त्री अर्थ" ही प्रकरण-सहत है। श्राक्षेपक के समान सुधारक लोग तो जैनधर्म को तिलाञ्जलि दे नहीं सकते। आक्षेप (श्र)-साहलगति ई मुह से सुताराको कन्या कहलाकर कवि ने साहित्य की छटा दिखलाई है । उसको दृष्टि में वह न्या समान ही थी । साहसगति के भावों में सुताग की कामवासना सूचित करने के लिये कवि ने नारी भार्या यादि न लिकर कन्या शब्द लिखा । यदि ऐसा भाव न होता तो कन्या न लिनकर रगडा लिप देना। समाधान-कविने रगडा इसलिये न लिखा कि सुतारा तब गैड नहीं हुयो । साहरागति सुग्रीवसे लडकर या उसे मार कर सुनाग नहीं छीनना चाहता था-यह धोखा देकर छीनना चाहता था । इमीलिये उसनं रूप-परिवर्तिनी विद्या सिस की आवश्यकता होने पर लड़ना पड़ा यह बात दूसरी है। सर ! जनक सुग्रीव मरा नहीं तब तक सुनारा को रॉड कसे कहा जा सकता था। दध्याचेतमि शमामिदग्धी निःसार मानसः। क्नोपायेनतां कन्यालप्स्ये निवृतिदायिनी ॥१०॥१४॥ यह श्लोक धमने यह सिद्ध करने के लिये उद्धत किया था कि कन्याशब्द का 'स्त्री सामान्य' अर्थ भी है और इसके उदाहरण माहित्यमे मिलते है । प्राक्षेपक ने हमारे दोनों प्रों को स्वीकार कर लिया है, तब समझमें नहीं आता कि वह उस अर्थ के समर्थन को क्यों अस्वीकार करता है । यह श्लोक विधवाविवाह के समर्थन के लिये नहीं दिया है। सिर्फ कन्या.शम्द के अर्थ का खुलासा करने के लिये दिया है, जो अर्थ आक्षेपक को मान्य है। नारी, भार्या न लिखकर कन्या लिखने से कामवासना
SR No.010349
Book TitleJain Dharm aur Vidhva Vivaha 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSavyasachi
PublisherJain Bal Vidhva Sahayak Sabha Delhi
Publication Year1931
Total Pages247
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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