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( २२५ ) गल में विजातीय विवाह रहे चाहे जाय परन्तु जर उस समय जैनधर्म की प्रवृत्ति नहीं थी तव वैदिकधर्म के अनुमार विधवाविवाह का रिवाज अवश्य था और पीछे के जैनी भी उन्हीं की सन्तान थे।
आक्षेप (ग)--मुमतमानों में भी सैय्यद का सैय्यद के साथ और मुगल का मुगल के साथ विवाह होता है।
(श्रीलाल) ममाधान-विधया विवाह के विगंध के लिये ऐम ऐसे आक्षेप करने वाले के होश हवास दुरुस्त है इस घान पर मुश्किल से ही विश्वाम किया जा सकता है। सैय्यद सैयद से विवाह कर इसमें विधवाविवाह का पगडा क्या हो गया बल्कि इससे तो यही सिद्ध हुआ कि जैसे मुसलमान लांग (श्रीलाल जी के मनानुसार) सजातीय विवाह करने यं मी विधवाविवाह करते हैं तो अन्यत्र गी मजातीय विवाह होने पर भी विधवाविवाह हो सकता है। समलिये अन्तराल में सजातीय विवाह के घने रहने से विधवाविवाह का प्रभाव सिद्ध नहीं होता । फिर मुमलमानों में विजातीय विवाह में होने की बात तो धृष्टता के माथ धोखा देने की बात है। जहाँगीर बादशाह की मॉ हिन्दु और थाप मुसलमान था। मुसलमानों में आधे से अधिक हिन्दरक्तमिश्रित है। प्राज गौ मुसलमान लोग चाहे जिस जाति की स्त्री से शादी कर लेते है।
आक्षेप (घ)-विजातीय विवाह से एक दो सन्तान के बाद विनाश हो जाता है । वनस्पतियों के उदाहरण से यह बात सिद्ध है।
समाधान-आक्षेपक को बनम्पति शारत्र या प्राणि शास्त्र का ज़रा अध्ययन करना चाहिये । प्राणिशास्त्रियों ने