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________________ विवाह करने की बान मिड होनी ! इच्छानुसार पति के पाम जाये यहाँ इच्छानुमार गट का कुछ प्रयोजन ही नहीं मालूम होना, जब कि, इच्छानुमार विवाद करे-दम वाक्य में इच्छानुमार शन्ट पावश्यक मालूम होता है । श्रापद्गतावाधर्मविवाहकुमारी परिगृहीनारमनान्याय प्रोपित अयमा माननीय न्यावाट्लेन ॥ सबसयमा रामायाय ॥३४॥ प्रोपिनमयमाणं पञ्चनीन्यार इनन ॥५॥ दश मयाणम् ॥ ३० ॥ एक देशदत्त गुरुकंत्रीणीनीन्ययमाराम् ||२७धृयमाराम् सप्तनीयान्यसादनंत ॥३॥ दत्त शुल्क पञ्चनीन्यथ्यमाणम् ॥३६दश अगमाराम् ।।४०॥ ननः परं धर्मस्थैर्विमृष्टा यथेष्टम् बिन्देन ॥४॥ निर्धनता में आपद्ग्रस्त कुमारी (अननयोनि) चिमा चार धर्मविवाहों में से कोई विवाह हुआ और उसका पनि बिना कहे परदेश चन्ना गया हो तो वह सात मासिकधर्म पयंत प्रतीक्षा करें। कहकर गया हो तो एक वर्ष नका प्रवासी पति की बयर न मिलने पर पाँच मासिकधर्म तक । बयर मिलने पर दश मासिकधर्म तक प्रतीक्षा करें। विवाह के समय प्रनिमात धन का एक भाग ही जिसने दिया हो ऐसा पनि विदेश जानेपर अगर उसकी मार न मिले नो नीन मासिकधर्म नक और खबर मिलने पर साल मासिक धर्म तक उसकी प्रतीक्षा करे अगर प्रतिज्ञान धन साग देटिया हो तो खबर न मिलने पर तीन और खबर मिलने पर सान मासिकधर्म तक प्रतीना करे । इसके याद धर्माधिकारी को श्राना लेकर इच्छानुसार दूसरा विवाह कर ले (यहाँ भी यथेट शब्द पड़ा हुआ है ।)। साथ ही धर्माधिकारीसे प्राक्षा लेने की बात कही गई है। पुनर्विवाह के लिये ही धर्माधिकारी की आशा की ज़रूरत है न कि पति के पास जाने के लिये। फिर
SR No.010349
Book TitleJain Dharm aur Vidhva Vivaha 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSavyasachi
PublisherJain Bal Vidhva Sahayak Sabha Delhi
Publication Year1931
Total Pages247
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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