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________________ ( १६० ) नहीं होती तो शास्त्रों की बाता को छिपाकर लोगों को पाखा में धूल झोंकते है। ग्राक्षेप (ख)-सुपि सुनार नहीं था । ( श्रीलाल, विद्यानन्द)। समाधान-पुराने समय में प्रायः जाति के अनुमार ही लोग आजीविका करते थे, इसलिये पानीविका के उल्लेख सं उसकी जाति का पता लग जाता है। अगर किसी को चर्मकार न लिखा गया हो परन्तु जूते बनाने का बात लिखी हो, साथ ही प्रेग्नी काई बात न लिनी हा जिसस बह चमार सिद्ध न हो तो यह मानना ही पड़ेगा कि वह चमार था । यही बात सुदृष्टि की है। उसने रानी का हार बनाया था और मरने के बाद दूसरे जन्म में भी उसने हार बनाया। अगर वह सुनार नहीं था तो (१) पहिले जन्म में वह हार क्यों बनाता था ? (२) ब्रह्मचारी नेमिदत्त ने यह क्यों न लिखा कि वह था तो वेश्य परन्तु सुनार का यन्धा करता था ? (३) दुसरे जन्म में जब राजकर्मचारी मर सुनागे के यहाँ चक्कर लगा रहे थे तब अगर वह सुनार नहीं था ता उसके यहाँ क्यों आये। सुदृष्टि के सुनार होने के काफी प्रमाण हे । आज से १६ वर्ष पहिले जो इस कथा का अनुवाद प्रकाशित हुया था और जो स्थितिपालको के गुरु प० धन्नालालजी को समर्पित किया गया था उसमें भी सुदृष्टि को सुनार लिखा है। उसकी व्यभिचारजातता पर नो किसी का सन्देह हो ही नहीं सकता। हॉ, धोखा देने वालों की बात दूसरी है। सत्ताईसवाँ प्रश्न । सोमसेन त्रिवर्णाचार का हम प्रमाण नहीं मानते परन्तु
SR No.010349
Book TitleJain Dharm aur Vidhva Vivaha 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSavyasachi
PublisherJain Bal Vidhva Sahayak Sabha Delhi
Publication Year1931
Total Pages247
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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