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(१२) आक्षेप (च (-मुनियों के साथ श्रावक समूह का चलना नाजायज़ मजमा नहीं है।
समाधान-केवली को छोडकर और किसी के साथ श्रावकसमूह नहीं चलना। हाँ, जब भट्टारकों की सृष्टि हुई और उनमें से जब पिछले भट्टारकों ने धर्मसंवा के स्थान में, समाज से पूजा कराना और नवाची ठाठ से रहना ही जीवन का ध्येय बनाया तय अवश्य ही उनने ऐसी आशाएँ गह डाली जिससे उन्हें नाववी ठाठ से रहने में सुभीता हो । प्राचीन लोगों के महत्व बढाने के बहाने उनने अपने स्वार्थ की पुष्टि की । पीछे भोले मनुष्यों ने उसे अपना लिया।
आक्षेप (छ)-गटी तो श्राठवीं प्रतिमा धारी भी नहीं बनाता। फिर मुनियों से ऐसी बात कहना तो असभ्य जोशकी चरम सीमा है । (विद्यानन्द) ___ समाधान-जिन असभ्य ढोंगियों के लिये रोटी बनाने की बात कही गई है वे मुनि, शाठची प्रतिमाधारी या पहिली प्रतिमाधारी तो दूर, जैनी भी नहीं है, निकृष्ट मिध्यादृष्टि है । दूसरी बात यह है कि प्रारम्भ त्याग में प्रारम्भत्याग तो होना चाहिये । परन्तु ये लोग पेटपूजा के लिये जैसा घोर प्रारम्भ कराते हैं उसे देखकर एक उद्दिष्टत्यागी तो क्या आरम्मत्यागी भी शरमिन्दा हो जायगा। विशेष के लिये देखो २१-क । शान्त के विषय में २१-ख में विचार किया गया है।
आक्षेप (ज)-मुनियों के लिये अगर केवल अप्रासुक भोजन का ही विचार किया जाता तो मृलाधार आदि में १६ उद्गम दोष और ४६ अन्तराय टालने का विधान क्यों है ?
(विद्यानन्द) समाधान-दोष और अन्तराय के भेद प्रभेद जो मता. धार आदि में गिनाये गये हैं वे तीन बातों को लक्ष्य करके ।