SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 190
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१०) खात का स्पर्श ग्म गन्ध वर्ण ममी घृणित है। उसमें कृमि आदि भी रहते है इसलिये वह अणाध है । गेहूँ में ये बुगाइयाँ नहीं है इसलिय खाद्य है। क्या नाक्षेपक बतलायगा कि जीवित प्राणियों को निगल जाने वाले मगर मच्छों में तथा अन्य अशुचिमाजी पशुत्रों में ऐसी कौनसी विशेषता है जिससे वेशद्रों से भी अच्छे समझे जाते है। हमारे सामन ता ब्राह्मण और शुद्ध दोनों यगावर है। जा सदाचारी है वही उच्च है। तुम मरीख सदाचारशत्रुश्री और धर्मध्वसियों में ही सटाचार का कुछ मूल्य नहीं है । तुम लोग शैतान के पुजारी हो इसलिये दुराचार्ग को इतना धुणिन नहीं समझते जितना शुद्र का । हम लोग भगवान महावीर के उपासक है इसलिये हमारी दृष्टि में शद भी भाई के समान है । सिर्फ दुराचारी निंद्य है। आक्षेप (ग)-जब तक शरीर में जीव है नब तक वह हाड मांस नहीं गिना जाना । (श्रीलाल) समाधान-तब तो शुद्र का शरीर भी हाड मांस न गिना जायगा । फिर उसके हाथ के जल ले और उससे छुए हुए जलाशय के जल तक से इतनी घृणा षयों ? विद्यानन्द ने हमारे लेख में भाषा की गल्लियाँ निकालने की असफल चेष्टा की है। हिन्दी में विमक्ति चिन्ह कहाँ लगाना चाहिये, कहाँ नहीं, इसक समझने के लिये आक्षेपक को कुछ अध्ययन करना पड़ेगा । 'खाने नहीं मिलता'-यहाँ'को' लगाने की कोई आवश्यकता नहीं है । अगर 'को' लगाना ऐसा अनिवार्य हो तो 'मैं जान भी न पाया कि उसने पकड लिया' इम वाक्य में जाने के साथ 'को' लगाना चाहिये और 'जाने क भी न पाया' लिखना चाहिये । 'ज़्यादा' 'ज़्यादह' 'ज्यादह, ज्यादा इनमें से कौनसा प्रयोग ठोक है इस की मीमांसा
SR No.010349
Book TitleJain Dharm aur Vidhva Vivaha 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSavyasachi
PublisherJain Bal Vidhva Sahayak Sabha Delhi
Publication Year1931
Total Pages247
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy