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वीसवाँ प्रश्न यहाँ यह पूछा गया है कि ये विधाएँ न होती तो संख्यावृद्धि होती या नहीं। बहुत जातियों में विधवाविवाह होता है और सन्तान भी पैदा होती है इसलिये संख्यावृद्धि को बान नो निश्चित है। जहाँ विधवाविवाह नहीं होता वहाँ भ्रणहत्या प्राठि से नथा दम्मा विनैकया आदि कहलाने वाली सन्तान पैदा होने में विधवाओं के जननीत्व का पता लगता है। विद्यानन्द जी का यह कहना निरर्थक प्रलाप है कि अगर वे बन्ध्या होती नो ? बन्ध्या होनी नो सन्तान न बढनी सिर्फ ब्रह्मचर्याणुवन का पालन होना । परन्त जैनसमाज की सव विधवाएँ बन्ध्या है इसका कोई प्रमाण नहीं है बल्कि उनके प्रबन्ध्यापन के बहुत से प्रमाण हैं। श्रीलाल का यह कोग भ्रम है कि विधवाविवाह वाली जातियों की संख्या घट रही है। कोई भी आदमी-जिसके ऑखे हैं-विधवाविवाह और सन्तानवृद्धि की कार्यकारणव्याप्ति का विरोध नहीं कर सकता । रोग से, भूखों मर कर या अन्य किसी कारण से कहीं की मृत्युसंख्या अगर वह जाय तो इस में विधवाविवाह का कोई अपराध नहीं है। उससे तो यथासाध्य संख्या की पूर्ति ही होगी। परन्तु बलाद्वैधव्य से तो संख्या हानि ही होगी।
विधवाविवाह से व्यभिचारनिवृत्ति नहीं होती, इसका खण्डन हम पहिले कई बार कर चुके है। सुदृष्टि की चर्चा के लिये अलग प्रश्न है । वहीं विचार किया जायगा ।
आक्षेप (क)-माता बहिन प्राटि से मांग करने में भी सन्तान हो सकती है । (श्रीलाल)
समाधान-जिस दिन माताओं और वहिनों का पुत्र