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________________ समाधान-सातये नरक में सम्यक्त्व नष्ट न होने की वात में नियम करने की बात आक्षेपकने अपने मनसे घुसेड दी है। सातये नरक के नारकी के न तो सम्यक्त्व होने का नियम है न सदा स्थिर रहनेका । यात इतनी ही है कि सात नरक का नारकी श्रीपशमिक और वायोपशमिक सम्यक्त्व पैदाकर सकता है और वह सम्यक्त्व (बायोपशमिक) कुछ कम तेतीस सागर तक रह सकता है । तात्पर्य यह कि वहाँ की परमकृष्ण लेश्या और रोगपरिणामो से इतने समय तक उसके सम्यक्त्व का नाश नहीं होता। उसके सम्य. स्वका कभी नाश ही नहीं होता-यह मैंने नहीं कहा। सानवे नरक के नारकी एक दूसरे को पानी में पेल देते है, माड में भूज देते है, आरे से चीर डालते है, गरम कडाही में पका डालते हैं ! क्या ऐसे कर कामों से भी विधवाविवाह का काम बुरा है ? क्या उनके इन कामों से पाप बन्ध नहीं होता ? सातवें नरक के नारकी यदि पापी न होते तो वे तिर्यञ्चगतिमें ही क्यों जाते ? और उनका वह पाप इतना जबर्दस्त क्यों होता. कि उन्हें एक बार फिर किसी न किसी नरक में आने के लिये बाध्य करता? तत्वार्थसारके इस श्लोक पर विचार कीजिये न लभन्ते मनुष्यत्व सप्तम्या निर्गताः क्षितेः। तिर्यक्त्वे च समुत्पद्य नरकं यान्ति ते पुनः ॥१४॥ अर्थात्-सातवे नरक से निकला हुआ जीव मनुष्य नहीं हो सकता । तिर्यञ्च गति में पैदा होकर उसे फिर नरक में ही जाना पड़ता है। क्या विधवाविवाह करने वालों के लिये भी शास्त्र में ऐसा कहीं विधान है ? आक्षेपक की यह बात पढ़ कर हँसी श्राती है कि सातवें नरक के नारकी यदि ज़्यादा पाप करेंगे तो फल कहाँ भोगेंगे १ तत्वार्थसार के उपयुक्त श्लोक में बत
SR No.010349
Book TitleJain Dharm aur Vidhva Vivaha 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSavyasachi
PublisherJain Bal Vidhva Sahayak Sabha Delhi
Publication Year1931
Total Pages247
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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