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________________ ( १५३ ) है कि अकेली उमर हो जाने से क्या होता है, उसके लिये अन्य अन्तरङ्ग eिrद्र निमित्त तो मिलना चाहिये । यदि विवाह के लिये वे निमित्त १४ वर्ष की उमर के पहिले नहीं मिलते तो उसक पहिले होने वाले विवाह ( नाटक) नाजायज है । इसलिये उन विवाहों के निमित्त से सवा विधवा शब्द का प्रयोग न करना चाहिये । आनंद ( ख ) - श्रमरोपकार ने पाणिगृहीती को पत्नी कहा है, इसलिये पाणिगृहोता बालिका चाहे वह १ वर्ष की न हो अवश्य ही पतिवियोग होने पर विवा कहलायगी | ( विद्यानन्द ) समाधान - पाणिगृहीती का अगर शब्दार्थ ही लिया जाय तब तो विवाह नाटक के पहिले ही वे वा विधवा कहलाने लगेगी क्योंकि छोटी २ वास्तिकाओं के हाथ चार्य, भाई और पड़ोसियों के द्वारा पकड़े ही जाया करते हैं। अगर पाणिगृहीनी का मतलय विवाहिता है तो माता पिता के द्वारा किसी से हाथ पकडा देने ही से बालविवाहिता नहीं कही जामस्ती है। इसीलिये एक वर्ष की बालिका किसी भी हालत में विधवा या सधवा नहीं कहला सकती । विधवाविवाह, धार्मिक दृष्टि से व्यभिचार है-इस बात का उत्तर पहिले अच्छी तरह अनेक बार दिया जा चुका है । श्रक्षेप ( ग ) - ग्रहण करने में व्रतीके भावोंकी जरू रत है भी और नहीं भी है। छः वर्ष के बच्चे को पानी छान कर पीने का न दिला दिया श्रीर तीस वर्ष के आदमी ने बन नहीं लिया। इनमें कौन अच्छा है ? क्या उस बच्चे का पुरायबन्ध न होगा ? समाधान - श्राक्ष पक ने 'धनग्रहण करने में भावों की
SR No.010349
Book TitleJain Dharm aur Vidhva Vivaha 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSavyasachi
PublisherJain Bal Vidhva Sahayak Sabha Delhi
Publication Year1931
Total Pages247
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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