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________________ ' (१५१ ) समाधान--जहाँ विवाह का लक्षण नहीं जाना और फिर भी लोग विवाह की कल्पना करते हैं नो कहना ही पडेगा कि वह विवाह स्थापना निक्षेप से है, जैसे कि नाटक में स्थापना की जाती है। श्राक्ष पक का कहना है कि व्यमिचार में भी स्थापनानिक्षेप से परस्त्रो में म्बस्त्री की स्थापना करली जायगी। परन्तु यही वान नो हमाग पक्ष हैं । स्था. पना नो व्यभिचार में भी हो सकती हैं परन्तु व्यभिचारी वर बधू नहीं कहला सकते । इस तरह नासमझ बालक बालिकाओं में भी वर वधू की स्थापना हो सकती है परन्तु वे बाम्नव में वर वधू नहीं कहला मकने । चौदहवाँ प्रश्न इस प्रश्न में यह पूछा गया है कि पत्नी बनने के पहिले क्या कोई विधवा हो सकती है और व्रत ग्रहण करने में व्रती के भावों की ज़रूरत है या नहीं ? इसका मतलब यह है कि अाजकल विवाह नाटक के द्वाग बहुनसी बालिकाएँ पत्नी बना दी जाती है परन्तु वास्तव में वे पत्नी नहीं होनी । उनको (उम नाटकीय पति के मर जाने पर विधवा न कहना चाहिये । वन ग्रहण करने में भावों की जरूरत है। बालविवाह में विवाहानुकूल भाव ही नहीं होते। इसलिये उम विवाह से कोई किसी तरह की प्रतिक्षा में नहीं बँधता। श्रीलाल ने वे ही पुगनी याने ही है, जिसका धव (पनि) मर गया है वह विधवा अवश्य कही जायगी आदि । परन्तु यहाँ तो यह कहा गया है कि वह नाटकीय पनि वास्तविक पनि ही नहीं है। फिर उसका मग्ना क्या और जीना क्या ? उसका पनि क्या और पत्यन्नर क्या? आक्षेप (क)-आठ वर्ष की उमर में जब बन लिया
SR No.010349
Book TitleJain Dharm aur Vidhva Vivaha 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSavyasachi
PublisherJain Bal Vidhva Sahayak Sabha Delhi
Publication Year1931
Total Pages247
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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