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________________ (१४५ ) में शाल शन्न का यही अर्थ किया जाता है कि जिसने व्याकरण काव्य कोपाटि नो पढ लिये परन्तु न्याय न पढा हो। इसी तरह विवाह के प्रकरण में मो समझना चाहिये । इस विषय में श्रानेपक ने शुरू में भी भूल खाई है । वास्तव में शङ्कराचार्य विवाह के विषय में अनमिन नहीं थे। वे कामशास्त्र में अनभित थे और इसी विषय में वे पराजित हुग थे। विवाह में कामवासना में और कामशास्त्र में घडा अंतर है। यह बान पाने एक को समझ लेना चाहिये। आक्षेप (छ)-पहिले गर्भस्य पुत्रपत्रियों के भी विवाह होते थे और वे नाजायज न माने जाते थे। विद्यानन्द) समाधान-उम आक्षेप से तीन याने ध्वनित होती है-(१) पुराने जमाने में आजकल की मानी हु विवाहविधि प्रचलित नहीं थी क्योंकि इन विवाहविधि में कन्या के द्वाग सिद्धमंत्र की स्थापना की जानी है, सप्तपदी होती है, तथा वर कन्या को और भी किया करनी पड़ती हे जो गर्भस्थ वरकन्या नहीं कर सस्ते । (२) गर्भ में अगर दोनों तरफ पुत्र हो और माता पिता के बचन ही विवाह माने जॉय और वे नाजायज़ न होन के नो पुत्र पुत्रों में भी विवाह कहलाया। अथवा यही कहना चाहिये कि वह विवाह नहीं था। माता पिना ने सिर्फ सम्भव होने पर विवाह होने की बात कही थी। (3) जब गर्भ में विवाह हो जाना था तय गर्भ में ही लडकी सधवा कहलायी। दुर्योधन और कृष्ण में भी ऐसी बात चीत हुई थी। दुर्योधन के पुत्री उदधिकुमागे हुई जो गर्भ में ही प्रद्युम्न की पत्नी कहलायी । परन्तु प्रद्युम्न का हरण हो गया था इसलिये मानुकुमार के साथ विवाह का आयोजन हुा । गर्भस्य विवाह को श्राक्षेपक नाजायज मानते नहीं है इसलिये यह उदधिकुमारी के पुनर्विवाह का आयोजन कह
SR No.010349
Book TitleJain Dharm aur Vidhva Vivaha 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSavyasachi
PublisherJain Bal Vidhva Sahayak Sabha Delhi
Publication Year1931
Total Pages247
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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