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________________ (१३०) कुछ होश भी है कि श्राप ऊपर पपा कुछ लिख पाय ! पहिले उस जलाकर ग्याक पर डालो नय मरी थान करना। समाधान-हमने कहा था कि "यमि विवाह होने पर भी किन्हीं लोगों की कामयामना शान्न नाहींनी ना समे विधवाविवाद का निषेध कमेको माना फिरनी विवाह मात्र फा निषेध होना चाहिये।' पाटक, दे दिमागमा वक्तव्य या विवाह मार्ग को उडाने का है ?मनी विधवा. विवाह और कुमागे विवाद दोनों के समर्थ है। परन्तु जो लोग जिस कारण से विधवाविवाद अनावश्यक समझते है, उन्हें उमी कारण R कुमार्गनियाद भी अनावश्यक मानना पडेगा । श्रमली यात तो यह मिशगर शिमी जगह विवाद (कुमारीविद्याह या विधवाविवार) का फन्न न मिले तो क्या विवाहप्रथा उडा देना चाहिये ? हमारा कहना है कि नहीं उडाना चाहिये । जब कि शाक्षपकाना है, कि उडा देना चाहिये, क्योंकि श्राक्षेपक ने विधवाविवाह की प्रथा उडा देने के लिये उसकी निम्फालना का जिकर किया है । ऐसी निष्फलता कुमारी विवाह में में हो सकती है, इसलिये आक्षेपक क कथनानुसार वह प्रथा भी उडा देने लायक हरी। आक्षेप (त)- आदिपुगण, मागारधर्मामृत, प० मेधावी, पं० उदयलालजी, शीतलप्रसादजी, दयाचन्द गायलीय आदि ने पुत्रोत्पत्ति के लिये ही, विवाह कामभोग का विधान किया है, कामवासना की पूर्ति को कामुकता बतलाया है। समाधान-कामलालसा की पूर्ति कामुकता भले ही हो परन्तु कामलालसा की निवृत्ति कामुकता नहीं है । म्वनीरमण को कामकता भले ही कहा जाय. परन्तु परस्त्रीत्याग कामकता नहीं है। यह कामलालसा की निवृत्ति है। हमने शाखप्रमाणों से सिद्ध कर दिया है कि पूर्ण ब्रह्मचर्य पालन करने की प्रस.
SR No.010349
Book TitleJain Dharm aur Vidhva Vivaha 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSavyasachi
PublisherJain Bal Vidhva Sahayak Sabha Delhi
Publication Year1931
Total Pages247
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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