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________________ ( ११८ ) इसका कारण यह है कि वे संध्या को ही लोटे दो लोटे पानी गटक जाया करते है । र ! विधवा होने से जिनकी कामवासना नष्ट हो जाये उनमें विवाह का अनुरोध नहीं किया जाना परन्तु जो कामवासना पर विजय प्राप्त नहीं कर सकती है उन्हें अवश्य ही विवाह कर लेना चाहिये । श्राप ( ग ) - काम शान्ति को विवाह का मुख्य उदे श्य बताना मूर्खता है । शुद्ध सन्मानोत्पत्ति व गृहस्थ धर्म का दानादिकार्य यही मुख्य उद्देश्य है । श्रनपत्र काम गौण है, मुख्य धर्म ही है । (श्रीलान्त ) ..... समाधान पिक यहाँ इतना पागल होगया है कि उसे काम में और कामवासना की निवृत्ति में कुछ नही नहीं मालूम होता | हमने कामवासना श्री निवृत्ति को मुख्य फल कहा है न कि काम का । श्रर कामवासना की निवृत्तित्रां धर्मरूप कहा है | धर्म अगर मुख्य फल है तो कामवासना की निवृत्ति ही मुख्य फल कहलायी । इसमें विरोध क्या है ? पुत्रां त्पत्ति आदि को मुख्यफल कहने के पहिले प्रक्षेपक गर हमारे इन शब्दों पर ध्यान देता तो उसे इस तरह निर्गत ---- प्रलाप न करना पडता f मान लीजिये कि किसी मनुष्य में मुनिवृत धारण करने की पूर्ण योग्यता है । ऐसी हालत में अगर वह किसी श्राचार्य के पास जावे ता वे उसे मुनि बनने की सलाह देंगे या श्रावक बन कर पुत्रोत्पत्ति की सलाह देंगे" ? यह कह कर हमने अमृतचन्द्र श्राचार्य के तीन श्लोक उद्धृत करके बतलाया था कि ऐसी अवस्था में आचार्य मुनि चूत का ही उपदेश देंगे । मुनिवृत्त धारण करने से बच्चे पैदा नहीं हो सकते, परन्तु कामलालसा की पूर्ण निवृत्ति होती है। इससे मालूम होता है कि जैनधर्म बच्चे पैदा करने पर जोर नहीं
SR No.010349
Book TitleJain Dharm aur Vidhva Vivaha 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSavyasachi
PublisherJain Bal Vidhva Sahayak Sabha Delhi
Publication Year1931
Total Pages247
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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